देवघर। आवासीय हो या जाति प्रमाणपत्र, प्रज्ञा केंद्र जाइए, आधे घंटे में बनवाइए। देवघर में कुछ ऐसा ही हो रहा है। बावजूद यह जान लें कि आधे घंटे में बननेवाले ये प्रमाणपत्र फर्जी हैं।
फर्जी प्रमाणपत्र बनाने का खेल का पर्दाफाश तब हुआ, जब देवघर की छोटी कुमारी ने अपना जाति प्रमाणपत्र बनाया। महज आधे घंटे में प्रमाणपत्र बन गया तो उसे शक हुआ। उसने इसकी अंचल कार्यालय में छानबीन कराई। पता चला कि यह फर्जी है, तब उसने वरीय अधिकारियों को सूचना दी।
इसके बाद देवीपुर के प्रज्ञा केंद्र संचालक बलराम मंडल को शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया। उसका केंद्र सील कर दिया गया है। प्रशासन पता लगा रहा कि उसने ऐसे कितने प्रमाणपत्र बनाए हैं।
सूत्रों ने बताया कि देवीपुर बाजार का प्रज्ञा केंद्र संचालक बलराम अंचल अधिकारी के डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल कर रहा था। इसे वह कॉपी करता था, इसके बाद फर्जी प्रमाणपत्र में पेस्ट कर देता था। इसे बनाने में आवेदक से मनमानी रकम लेता था।
दरअसल, देवीपुर में सीओ के प्रभार में प्रशिक्षु आइएएस अनिमेष रंजन हैं। वह अपने डिजिटल सिग्नेचर का डोंगल पास में ही रखते हैं। यहां पहले एक ऑपरेटर था, उसे भी दूसरे कार्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया है। कंप्यूटर पर काम अनिमेष खुद ही करते हैं।
बकौल अनिमेष रंजन गिरफ्तार प्रज्ञा केंद्र संचालक बलराम के बारे में पता चला है कि वह इस गोरखधंधे का मास्टरमाइंड है। इस बीच एक शिकायत आ गई, तब उसे पकड़ा गया।
ऐसे करता था गड़बड़ी
आवेदक बलराम मंडल के पास जाता था तो वह उससे आवेदन लेता था। सारे जरूरी दस्तावेज भी ले लेता था। आवेदन को ऑनलाइन करता था। फिर आवेदन नंबर जेनरेट करता था। उसने एक वर्ड फाइल बनाई थी। इसमें किसी आवेदक का पहले से बना हुआ प्रमाणपत्र रखा जाता था।
इसमें ही अपने पास आए आवेदक का नाम भरकर प्रमाणपत्र निर्गत कर देता था। खास बात ये है कि अधिकारी का डिजिटल सिग्नेचर भी सही रहता था, मगर एक चूक हो गई। प्रज्ञा केंद्र के प्रमाणपत्र किया हुआ, क्यूआर कोड गलत रहेगा। उसे स्कैन करते ही वास्तविक आवेदक का नाम सामने आएगा। ऐसे फर्जी प्रमाणपत्र को आप खुद भी क्यूआर कोड स्कैन कर पकड़ सकते हैं।
बड़ी बात ये कि फर्जी कागज के दम पर यदि आपने कहीं नौकरी में सफलता पा ली तो क्यूआर कोड की जांच से पकड़ा जाना तय है।
आवेदक रहें सतर्क देवघर
प्रमाणपत्र आपके भविष्य की नींव रखता है। इसे बनवाते समय सतर्क रहें। आधे घंटे में प्रमाणपत्र नहीं बन सकता, यह जान लें। आवेदक झारसेवा पर जाकर आवेदन का नंबर डालकर सच्चाई का पता लगा सकता है। कार्यालय से जारी प्रमाणपत्र सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर दिखता है।
आवेदन जब ऑनलाइन होता है तो सीओ के लॉगिन में आता है। वहां से वह कर्मचारी के पास भेजा जाता है। वहां से सर्किल इंस्पेक्टर को दिया जाता है। रिपोर्ट के बाद सीओ के पास आता है-देवीपुर प्रभारी सीओ अनिमेष रंजन
इस प्रक्रिया में कम से कम एक सप्ताह लगता है। बलराम को जिस आवेदक की शिकायत पर पकड़ा गया, उसका आवेदन कर्मचारी के पास ही था। बावजूद प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया।