Saturday, 30 September 2023 00:00
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विधि आयोग ने कानून मंत्रालय से कहा पॉक्सो एक्ट में बदलाव करके सहमति से संबंध के मामले में उम्र को 18 वर्ष से घटकर 16 वर्ष करने की जरूरत नहीं. अगर अदालत को लगता है की 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सहमति से संबंध बने हैं तो वह उस आधार पर आदेश दे सकती है.
भारत का विधि आयोग सहमति से संबंध बनाने की उम्र को 18 साल से घटाने के पक्ष में नहीं है, हालांकि संतुलन कायम करने के लिए आयोग ने कानून में संशोधन कर कुछेक सिफारिशें शामिल करने को जरूर कहा है, इसमें सहमति से संबंध के मामले में सजा में छूट समेत अन्य पहलू अदालत के विवेक पर छोड़ने की सिफारिश की गई है. बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के लिए 2012 में लाए गए कानून पॉक्सो एक्ट पर विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंपी थी. सरकार ने रिपोर्ट को शुक्रवार को सार्वजनिक किया है, जिसमें आयोग ने सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 साल घटाने पर कोई भी सिफारिश नहीं की है,
साथ ही 16 साल या उससे ऊपर की उम्र के नाबालिग के साथ संबंध बनाने के मामले में अदालत के विवेकाधिकार पर कई पहलुओं को छोड़ने को कहा है. याद रहे कि विधि आयोग की बैठक 27 सितंबर को हुई थी. इस दौरान एक देश-एक चुनाव के मुद्दे पर भी विमर्श किया गया था.
सहमति से संबंध बनाने की उम्र में बदलाव नहीं
विधि आयोग ने पॉक्सो कानून के मामले में दी गई रिपोर्ट में कानून की बुनियादी सख्ती को बरकरार रखने की हिमायत की है. सीधे तौर पर कहा जाए तो सहमति से संबंध बनाने की उम्र में कोई बदलाव नहीं करते हुए कुछेक पहलुओं को कानून में शामिल करने को कहा है. आयोग ने पॉक्सो एक्ट की धारा-4 और धारा-8 में संशोधन करके आयोग द्वारा सुझाए गए विभिन्न पहलुओं को शामिल करने की सिफारिश सरकार से की है.
दरअसल आयोग इन पहलुओं में सहमति से संबंध के मामलों में संतुलन कायम करने और नाबालिगों के हितों से जुड़े सेफगार्ड कानून में शामिल कराना चाहता है, अब देखना ये है कि केंद्र सरकार आयोग की इन सिफारिशों के पहलुओं को कानून में शामिल करती है या नहीं. याद रहे कि 16 से 18 साल के बीच सहमति से संबंध बनाने के मामले में पॉक्सो एक्ट में संशोधन की मांग तब उठी थी, जब इसका दुरुपयोग कई मामलों में देखा गया.
विधि आयोग ने की सिफारिश
आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि 16 साल या उससे अधिक (18 से कम) उम्र में सहमति से संबंध के मामले में लड़के-लड़की की उम्र में 3 साल या इससे ज्यादा अंतर हो तो अपराध ही माना जाए. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर उम्र का फासला 3 साल या उससे अधिक है तो इसे अपराध की श्रेणी में मानना चाहिए.
सहमति को तीन पैमानों पर परखने की सिफारिश की गई है और उसी आधार पर इसे अपवाद माना जाए. जबकि अदालत ऐसे मामलों पर विचार करें. तब यह देखें कि सहमति भय या प्रलोभन पर तो आधारित नहीं थी?, ड्रग का तो इस्तेमाल नहीं किया गया?, यह सहमति किसी प्रकार से शारीरिक व्यापार के लिए तो नहीं.
साथ ही आयोग ने कहा है कि उम्र कम करने की बजाय इसके दुरुपयोग को रोका जाए. आयोग के अनुसार मूल मकसद यह रखा गया है कि कानून में ढील देने के बजाय इसके बेजा इस्तेमाल को रोका जाए. इसके लिए हर मामले के आधार पर कोर्ट को उनके विवेकाधिकार से निर्णय लेने का दायरा बढ़ाने की सिफारिश की बात कही गई है.