विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की है. मध्य प्रदेश में जहां वो फिर से सरकार बनाने जा रही है तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसने कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया है. इन तीनों राज्यों में पीएम मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़कर बीजेपी ने ऐलान कर दिया था कि ये सत्ता का सेमीफाइनल है.
विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कांग्रेस का सफाया कर दिया. ये सिर्फ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी का विजय शंखनाद नहीं है, बल्कि इसमें साल 2024 के चुनाव की गूंज भी सुनाई दे रही है. इन तीनों राज्यों में पीएम मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़कर बीजेपी ने ऐलान कर दिया था कि ये सत्ता का सेमीफाइनल है. बीजेपी के सामने कांग्रेस थी, लेकिन निशाने पर विपक्ष के 28 दलों का गठबंधन था, जिसकी कवायद 5 महीने पहले शुरू हुई थी.
इंडिया नाम के विपक्षी गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है, जिसने लोकसभा चुनाव का माहौल बनाने की पूरी कोशिश की. बीजेपी के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति की ताकत विपक्षी दलों को समझ में आ चुकी थी, लिहाजा 2024 के चुनाव में विपक्ष ने जातिगत जनगणना को ट्रम्प कार्ड के तौर पर बाहर निकाला, जिसकी शुरुआत मंडल राजनीति के गढ़ बिहार से हुई.
इंडिया गठबंधन के ओबीसी कार्ड का टेस्ट भी कांग्रेस ने इन विधानसभा चुनावों में किया. उसकी वजह भी थी. छत्तीसगढ़ में लगभग 43 प्रतिशत आबादी पिछड़ी जातियों की है. वहां के सीएम भूपेश बघेल भी पिछड़ी जाति के हैं. मध्य प्रदेश में 48 प्रतिशत आबादी पिछड़ी जातियों की है और वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पिछड़ी जाति के हैं. यही हाल राजस्थान का भी है, जहां अंदाजन 42 प्रतिशत जनसंख्या पिछड़ी जाति की है और कांग्रेस के दोनों क्षेत्रीय छत्रप अशोक गहलोत और सचिन पायलट ओबीसी समुदाय से ही हैं. इसलिए कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराने की चुनौती देकर पिछड़ी जातियों का समर्थन पाने में पूरा जोर लगा दिया.
कांग्रेस का चुनावी मुद्दा था OPS
विधानसभा चुनावों का ऐलान होने से ठीक एक हफ्ते पहले दिल्ली में राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन बहाल करने के लिए बड़ी रैली की थी. कर्नाटक और हिमाचल के चुनाव में कांग्रेस का बड़ा चुनावी मुद्दा भी यही था, लिहाजा एमपी, राजस्थान समेत पांच राज्यों के चुनावों में भी कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का ऐलान किया.
ओल्ड पेंशन स्कीम और ओबीसी. ये दोनों मुद्दे साल 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार माने जा रहे थे, लेकिन इन दोनों की धार एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पीएम मोदी के सामने बेकार हो गई. इसका सन्नाटा सिर्फ कांग्रेस नहीं, बल्कि इंडिया गठबंधन के खेमे में भी साफ दिखा.
चुनाव नतीजे सामने आने के बाद इंडिया गठबंधन में शामिल ज्यादातर नेताओं ने चुप्पी साथ ली. राजनीति में अतीत के अनुभव और वर्तमान हालात से ही भविष्य निर्धारित होता है और विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सवाल यही है कि 2024 में विपक्ष के इंडिया गठबंधन का भविष्य क्या होगा.
विपक्ष के नेता कह सकते हैं कि जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए, वहां इंडिया गठबंधन मैदान में नहीं था, लेकिन, सच्चाई यही है कि इंडिया गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे का मामला इन चुनावों की वजह से ही अटका हुआ था. इन राज्यों के चुनाव नतीजों में कांग्रेस की हैसियत देखकर ही ये तय होना था कि यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इंडिया गठबंधन की मजबूत पार्टियां कांग्रेस को भाव देंगी या फिर कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टियों की शर्तों पर समझौता करना होगा, जिसका इशारा राहुल गांधी मुंबई में इंडिया गठबंधन की बैठक में दे चुके हैं.
सिर्फ तेलंगाना में मिली राहत…
इस चुनाव में कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि तेलंगाना में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला है. हालांकि इसमें भी बीजेपी का कोई नुकसान नहीं है, क्योंकि तेलंगाना में बीजेपी सत्ता की रेस में नहीं थी. तेलंगाना के नतीजों को विपक्षी पार्टियां अगर दक्षिण भारत में बीजेपी के सफाए के तौर पर पेश करती हैं, तो ये भी 2024 के लिहाज से खुद को भ्रम में रखने जैसा ही है, क्योंकि दक्षिण भारत की 130 में लगभग 100 सीटों पर बीजेपी कभी मजबूत नहीं रही.
फिलहाल चुनाव नतीजों से उत्साहित बीजेपी की नजर अब 2024 के चुनावों पर है, जबकि विपक्ष के इंडिया गठबंधन के नेता अपने राजनीतिक भविष्य की दशा और दिशा तय करने के लिए 6 दिसंबर को बैठक करने जा रहे हैं. ये बैठक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही तय थी, लेकिन नए हालात में इंडिया गठबंधन की बैठक का नतीजा क्या निकलेगा, ये अब तय नहीं है.