एक राह सोमनाथ से अयोध्या तक और दूसरी गोरक्षपीठ से रामनगरी तक. दो रास्तों की ये यात्रा दो सियासी हुक्मरानों के ज़रिये अलग-अलग राज्यों से प्रभु श्रीराम के दरबार तक पहुंचती है. ये साढ़े तीन दशक का राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक दस्तावेज़ है, जो आज़ाद भारत के सबसे बड़े घटनाक्रम में शुमार है. इसमें संत, समाज, सत्ता, सियासत, संस्कृति और अदालतें सब कसौटी पर रखे गए.
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश की नज़रें प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर होंगी. क्योंकि, दोनों उस ‘राम संकल्प’ के सूत्रधार हैं, जिसके पूरा होने का इंतज़ार देश की पीढ़ियों को रहा है. मंदिर आंदोलन से लेकर भव्य मंदिर की ‘राम राह’ तक प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी दोनों ने इस दिशा में अपने जीवन के सबसे ऊर्जावान समय की आहुतियां दी हैं.
रथयात्रा के मैनेजमेंट से लाइमलाइट में आ गए मोदी
1990 के दौर में जब मंडल-कमंडल की सियासत ने सिर उठाया, तो BJP के सामने हिंदू वोटबैंक को एकजुट रखना सबसे बड़ा संकट था. इसी दौर में BJP ने अपने वरिष्ठ BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी को सोमनाथ से बिहार तक रथयात्रा के लिए रवाना कर दिया. यात्रा के पूरे रूट का रणनीतिक मैप और मीडिया मैनेजमेंट तत्कालीन BJP नेता और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में था. PM मोदी उस वक़्त 40 साल के थे. गुजरात BJP में सचिव रहते हुए अपने सांगठनिक हुनर के दम पर उन्होंने ये बड़ी ज़िम्मेदारी हासिल कर ली थी.
1989 से ही मोदी संघ, VHP, बजरंग दल समेत तमाम हिंदूवादी संगठनों के साथ मिलकर संपूर्ण कारसेवा में जुट गए थे. रथयात्रा 25 सितंबर 1990 से 30 अक्टूबर तक चलनी थी, लेकिन 23 अक्टूबर को बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार कर जेल में डलवा दिया. लेकिन, तब तक रथयात्रा आधे से ज़्यादा काम कर चुकी थी. आडवाणी के सारथी की भूमिका में चल रहे मोदी रथयात्रा से जुड़ी हर ख़बर को देश-विदेश की मीडिया को ब्रीफ़ करते थे. लिहाज़ा वो मंदिर आंदोलन को लेकर संघ, संगठन और समाज के लाइमलाइट में आ चुके थे.
योगी ने गोरक्षपीठ को आंदोलन का केंद्र बनते देखा
1990 में कारसेवकों पर चली गोलियों ने पूरे देश समेत यूपी में भी राम मंदिर को लेकर माहौल तैयार कर दिया था. इसके बाद 1991 में 221 सीटें जीतकर BJP सत्ता में आ गई. इसी दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद राष्ट्रपति शासन लग गया. 4 दिसंबर 1993 तक राष्ट्रपति शासन रहा. उसके बाद सपा-बसपा के गठबंधन की सरकार बन गई. तब तक मंदिर आंदोलन को लेकर BJP और संघ समेत तमाम हिंदू संगठनों की गतिविधियों का केंद्र गोरक्षपीठ हुआ करता था.
इस दौर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन के अगुवा की भूमिका में थे. तब तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर आ चुके थे. गुरु गोरखनाथ पर रिसर्च करने के लिए गोरक्षपीठ में रहने लगे. यहां अयोध्या के संतों का श्रीराममंदिर को लेकर परिचर्चा और समागम होता था. योगी आदित्यनाथ इस पूरी हलचल के गवाह बन रहे थे. BJP और VHP के बड़े नेता महंत अवैद्यनाथ से राम मंदिर को लेकर क़ानूनी, राजनीतिक और सामाजिक रणनीति पर घंटों बात करते थे. योगी आदित्यनाथ ने गोरक्षपीठ को मंदिर आंदोलन का केंद्र बनते हुए देखा है.
राजनीतिक यात्राओं के रणनीतिक मास्टर बन गए मोदी
आडवाणी की रथयात्रा के क़रीब एक साल बाद दिसंबर 1991 को मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में एकता यात्रा निकाली गई. कन्याकुमारी से कश्मीर तक की इस यात्रा में तिरंगे लहराए गए. 14 राज्यों से होते हुए कश्मीर के लाल चौक तक एकता यात्रा ने देश में लोगों को एकजुट रहने के लिए प्रेरित किया. इस यात्रा की सफलता में नरेंद्र मोदी के सांगठनिक कौशल और प्रचार तंत्र को अहम माना जाता है. बहरहाल, 1991 से लेकर 2001 तक एक दशक में उन्होंने ख़ुद को संघ, संगठन और सियासत तीनों की कसौटी पर परखा. 2001 में मुख्यमंत्री बन गए.
2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर 2014 में देश के प्रधानमंत्री बनने तक मोदी ने राम मंदिर मुद्दे को देश के करोड़ों लोगों की आस्था का विषय बताया. इस मामले में प्रधानमंत्री संसद से लेकर चुनावी रैलियों तक में संवेदनशीलता दिखाई. 9 नवंबर 2019 को श्रीराम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक क़ानूनी फ़ैसला आने तक पीएम मोदी ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया कि ये धर्म की लड़ाई है, धर्म मार्ग पर चलते हुए जीती जाएगी.
90 में ‘धर्म युद्ध’, 17 में ‘सत्ता युद्ध’ के लिए गूंजा ‘जयश्रीराम’
1990 में जय श्रीराम का नारा BJP और हिंदूवादी संगठन मंदिर आंदोलन के लिए लगाते थे. तब ये नारा कारसेवकों में जोश भरने के लिए लगाया जाता था. देश-प्रदेश में मंदिर और राम के नाम पर एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए जय श्रीराम का जयकारा लगता था. बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी जब पहली बार 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने पहुंचे, तो उन्होंने ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाया. यूपी की जनता से इस नारे के साथ ख़ुद को जोड़ लिया. 2017 के चुनाव में PM मोदी दोनों हाथ उठाकर बोलते थे जय श्रीराम, जवाब में जनता कहती थी- जय जय श्रीराम.
इधर, योगी आदित्यनाथ 1996 से मंदिर आंदोलन की राह पर जाने वाली धार्मिक शाखाओं का हमसाया होने लगे थे. अयोध्या में सपा और बसपा की सरकारों में अयोध्या में परिक्रमा पर कई बार रोक लगाई गई. योगी आदित्यनाथ ने ‘राम संकल्प’ के तहत कई बार परिक्रमा की और गिरफ़्तार हुए. इसी दौर में अयोध्या में अखंड कीर्तन करने का फैसला हुआ. योगी आदित्यनाथ उसमें भाग लेने के लिए निकले, लेकिन रास्ते में उन्हें पुलिस-प्रशासन ने रोक दिया.
दरअसल, गोरक्षपीठ नाथ संप्रदाय की आध्यात्मिक आस्था का वो केंद्र है, जिसने सशक्त रूप से राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई की. बहरहाल, सार्वजनिक मंचों से जयश्रीराम का उद्घोष करने वाले मोदी और योगी का एक बड़ा ‘संकल्प’ पूरा हुआ. यूपी में BJP डेढ़ दशक बाद वापस आ सकी. इसमें जय श्रीराम के नारे ने पर्दे के पीछे से बड़ी भूमिका निभाई.
राममंदिर से लेकर विश्व रिकॉर्ड तक अयोध्या का कायाकल्प
2014 में मोदी सरकार के बाद जब 2017 में योगी सरकार यूपी में आ गई, तो उसके बाद से अयोध्या का कायाकल्प शुरू हो गया. मुख्यमंत्री योगी ने फैज़ाबाद का नाम बदलकर रामनगरी को अयोध्या नाम वाली पहचान एक बार फिर से दी. रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट समेत तमाम चीज़ों समेत ज़िले का नाम भी अयोध्या किया. इसके अलावा 2017 से लगातार अयोध्या के सरयू घाटों को वैश्विक स्तर पर चमकाने का काम किया. 2017, 2018, 2019, 2021 औक 2022 के बाद अब 2023 की दिवाली में एक बार फिर अयोध्या के घाटों पर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनेगा. सरयू तट पर पौने दो लाख दीयों से शुरू हुआ सफ़र इस बार 24 लाख दीयों तक पहुंचेगा.
योगी सरकार हर साल बेहद भव्यता के साथ अयोध्या में दिवाली का उत्सव मनाती है. लेज़र रामायण, लाखों दीयों से पटे घाट, हर तरफ़ आतिशबाज़ी, फूलों से सजा राम दरबार और दूर-दूर तक श्रीराम के भजनों की गूंज. मोदी और योगी सरकार ने अयोध्या को करोड़ों रुपये की परियोजनाएं और स्पेशल प्रोजेक्ट दिए हैं. दोनों राजनेता अपने-अपने ‘राम संकल्प’ को पूरा करने की दिशा में बढ़ते-बढ़ते अब उस मुक़ाम पर पहुंच चुके हैं, जहां से रामलला अपनी भव्य अयोध्या और दिव्य दरबार में विराजमान होते हुए दिख रहे हैं.
समय, समाज, राष्ट्र और अयोध्या इतिहास रचेंगे
22 जनवरी 2024 को अयोध्या पर सारी दुनिया की निगाहें होंगी. भगवान श्रीराम अपने भव्य मंदिर के दिव्य दरबार में प्राण प्रतिष्ठा के ज़रिये स्थापित होंगे. तब समय, समाज, राष्ट्र और दुनिया उन दो नेताओं को ‘राम संकल्प’ पूरा करते हुए देखेगी, जो इस सपने को श्रीराम नाम का ‘प्राण वायु’ देते रहे. आज़ाद भारत में श्रीराम मंदिर और अयोध्या दोनों अपने अब तक के सबसे विराट अवतार में दिखेंगे. अब जब रामलला से किया गया वादा लगभग पूरा हो चुका है तो प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी अब ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष को ‘जय सियाराम’ के साथ संपूर्ण कर रहे हैं. पीएम मोदी और सीएम योगी दोनों ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के आमंत्रण को धन्य करने वाला पल बताया है.