लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के खिलाफ INDIA गठबंधन का गठन किया गया है, लेकिन पीएम पद के उम्मीदवार को लेकर घमासान मचा हुआ है. बिहार से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग उठने लगी है, लेकिन शायद ही अन्य घटक दल इससे सहमत होंगे.
लोकसभा चुनाव पर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की पैनी नजर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए विपक्षी गठबंधन INDIA का गठन किया गया था, लेकिन सारी चर्चाएं और अटकलें इसी गठबंधन को लेकर हैं. विपक्षी गठबंधन में कौन पीएम पद का उम्मीदवार होगा? इस पर राष्ट्रीय राजनीति में हंगामा मचा हुआ है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सामने आ रहा है. हालांकि, इस बात पर काफी संदेह है कि INDIA के बाकी सदस्य नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने के लिए सहमत होंगे?
INDIA गठबंधन की तीसरी बैठक 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में हुई थी. उस बैठक में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं. समितियां, उपसमितियां भी गठित की गईं, लेकिन पटना, बेंगलुरु और मुंबई की बैठकों के बाद भी INDIA गठबंधन में मुख्य सवाल यही है कि गठबंधन का प्रधानमंत्री चेहरा कौन होगा?
इस बीच, आरजेपी प्रवक्ता और विधायक भाई वीरेंद्र, विधानसभा के डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी और जदयू नेता ललन सिंह ने मांग कर डाली कि नीतीश कुमार को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाए. सभी ने कहा कि नीतीश कुमार में पीएम पद के सभी गुण हैं और यदि INDIA गठबंधन पीएम पद के उम्मीदवार का नाम घोषित करेगा कि तो नीतीश कुमार ही होंगे.
नीतीश को पीएम बनाने की मांग के मायने
हालांकि इसके पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी को भी पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग तृणमूल कांग्रेस के नेता करते रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार की तरह ही ममता बनर्जी भी इस मांग को दरकिनार करती रही हैं, लेकिन अब जब गठबंधन बन गया है तो फिर नीतीश कुमार को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग के क्या मायने हैं?
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क बताते हैं कि नीतीश कुमार जब से आरजेडी के साथ आए हैं. तभी से चर्चा होती रही है कि सीएम की कुर्सी तेजस्वी को, पीएम पद की कुर्सी नीतीश को दी जाए. नीतीश कमार शुरू में प्रतिक्रिया नहीं देते थे. बाद के दिनों में इस मुद्दे समर्थन नहीं मिला तो उन्होंने यह कहना शुरू किया कि पीएम पद की रेस में शामिल नहीं हैं. हालांकि उस समय जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि यदि तेजस्वी सीएम बने, तो जदयू खत्म हो जाएगा, लेकिन अब आरजेडी कैंप जोर इसकी मांग करने लगी है कि नीतीश कुमार को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाए.
उन्होंने कहा कि भाई वीरेंद्र लालू परिवार से काफी करीबी रहे हैं. चाहे ललन सिंह हों या महेश्वर हजारी या भाई वींरेंद्र हो. सबका मतलब एक ही कि नीतीश कुमार बिहार छोड़ दें. अटकलें हैं कि महेश्वर हजारी लोजपा चिराग पासवान के संपर्क में हैं. नीतीश ने टोका भी था, लेकिन जेडयू के अंदर ऐसे कुछ लोग हैं, जो नीतीश कुमार को अस्थिर करना चाहते हैं.
उनका कहना कि उनकी निष्ठा दूसरे जगह बताई जा रही है. आरोप यह भी लग रहे हैं कि ललन सिंह आरजेडी से मिले हैं. आरजेडी ने जदयू को तोड़ने के लिए उनका इस्तेमाल कर रही है. हाल के दिन में जदयू के भीतर उठापटक मची है. वह इसी का परिणाम है. मनोज झा ठाकुर को लेकर कविता पढ़ी ललन सिंह बचाव में आये, लेकिन नीतीश कुमार के सबसे करीबी संजय झा ने ऐसे बयान से से बचने का सलाह दी.
नेशनल पर लोकल राजनीति हावी
इस तरह से बिहार की राजनीति अब INDIA गठबंधन की राजनीति पर हावी हो रही है. भले ही INDIA गठबंधन के शीर्ष नेता संयुक्त नेतृत्व की बात करते हैं, लेकिन निचले स्तर के नेता और कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के नेता के लिए बल्लेबाजी में व्यस्त हैं. नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने को लेकर राजद और जदयू के बीच पहले ही चर्चा हो चुकी है.
राजद नेताओं ने भी फुलवारीशरीफ में चादरपोशी कर नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की दुआ मांगी. राजद को जदयू का समर्थन करने में कोई दिक्कत नहीं है. उनके मुताबिक बिहार से किसी को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए. नीतीश कुमार योग्य उम्मीदवार हैं. हालांकि, भारत की सहयोगी आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दोहराया है कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जहां सभी 1.4 अरब लोग प्रधानमंत्री बनें, न कि कोई विशेष व्यक्ति.
नीतीश के प्रधानमंत्री बनने के सपने की उनके पुराने दोस्त और वोटर प्रशांत किशोर ने आलोचना की है. उन्होंने कहा, ‘जिनके पास लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है वे प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं.’ केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी तंज कसा. दूसरी ओर, आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने देश की 1.4 अरब जनता को प्रधानमंत्री बनाने का वादा किया है, जो व्यावहारिक रूप से असंभव है. दूसरे शब्दों में कहें तो केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गठबंधन पर सवाल उठा रहे हैं.
पीएम पद के अतिरिक्त कई और मुद्दे
हालांकि, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर निर्णय न ले पाना INDIA अलायंस के विवाद का एकमात्र कारण नहीं हैं, ऐसे कई मुद्दे हैं जिनका अभी तक समाधान नहीं हो सका है. इनमें से एक है सीट शेयरिंग. हाल ही में INDIA एलायंस ने मध्य प्रदेश में संयुक्त रैली की थी, लेकिन आखिरी वक्त पर वह बैठक रद्द कर दी गई. गठबंधन की भविष्य की योजनाओं पर संदेह पैदा हो गया है. एक अन्य समस्या जनगणना पर अंतर-गठबंधन असहमति है.
विभिन्न राज्यों में भी भारत गठबंधन के सहयोगियों के बीच तीखी तकरार चल रही है. पंजाब में कांग्रेस ने कहा है कि वह सभी 13 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. कांग्रेस भी दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस के इस व्यवहार से आम आदमी पार्टी बेहद नाराज है.
उधर, पश्चिम बंगाल में भी स्थिति वैसी ही है. कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी लगातार मुख्यमंत्री और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी पर हमला बोल रहे हैं. उन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री की स्पेन यात्रा पर तीखा कटाक्ष किया. एनसीपी नेता शरद पवार ने एक बार फिर अधीर को संयम बरतने की सीख दी. दूसरी ओर, तृणमूल ने जाति-आधारित जनगणना पर आपत्ति जताई थी.
घटक दलों में टकराव
तमिलनाडु में भी डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणी के बाद कांग्रेस से आमने-सामने हैं. कुल मिलाकर, गठबंधन के कई दलों, विशेषकर तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का टकराव बेचैनी बढ़ा सकता है..मूलतः समस्या कांग्रेस में है. बीजेपी के अलावा कांग्रेस का कई राज्यों में कई क्षेत्रीय पार्टियों से टकराव चल रहा है.
गठबंधन में शामिल होने के बाद INDIA को उनसे समझौता करना होगा. उदाहरण के तौर पर पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की लड़ाई समाजवादी पार्टी से थी. अब वे सहयोगी हैं. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए लेफ्ट और कांग्रेस ने गठबंधन बनाया. इस बार लोकसभा चुनाव में वे तृणमूल से हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं.
दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच टकराव चरम पर है. गुजरात में कांग्रेस बीजेपी के साथ-साथ आप से भी लड़ रही है. हिमाचल प्रदेश में भी जिस तरह से आप अपनी ताकत बढ़ा रही है, उससे कांग्रेस असहज है. गोवा में भी यही स्थिति है. कुल मिलाकर INDIA गठबंधन की राह कांटों भरी है. गठबंधन के सामने इस वक्त कई संकट हैं, इन संकटों से उबरने के लिए उन्हें काफी तैयारी करनी होगी.