साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था "काव्य-सरिता", लखनऊ के तत्वावधान में "मातृ दिवस" की पूर्व संध्या पर एच. ए. एल., लखनऊ परिसर स्थित 'वेलफेयर सेंटर' के विशाल सभागार में अनिल कुमार शर्मा की अध्यक्षता, वरिष्ठ ग़ज़लकार नरेंद्र भूषण के मुख्य अतिथ्य, ओजकवि रवीन्द्र नाथ तिवारी के विशिष्ट आतिथ्य में काव्य समारोह का आयोजन किया गया। संचालन युवा कवि कुलदीप शुक्ल 'दीप' ने किया।
काव्य समारोह की शुरुआत कवयित्री निशा सिंह 'नवल' द्वारा माँ वीणापाणि की वन्दना से हुई। कार्यक्रम में सभी ने एक से बढ़कर एक दोहे, छंद, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य और शृंगार रस की रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं को ताली बजाने पर मजबूर कर दिया।
रचनाकारों द्वारा किये गये काव्य पाठ की कुछ प्रमुख पंक्तियाँ इस प्रकार से हैं—
कवयित्री अर्चना अभिनव सिंह ने वीर सपूतों को नमन करते हुए पढ़ा— सबके मन में देश प्रेम का सुंदर भाव जगाओ/ वीर सपूतों का वन्दन कर श्रद्धा सुमन चढ़ाओ। युवा कवि आकाश भूषण के उद्गार कुछ ऐसे थे— बाज़ारों में बिक रही है कलम/ झूठ को सच लिख रही है कलम।
उसके बाद कवि अनुज 'अब्र' ने माँ की महिमा पर पंक्तियाँ निवेदित कीं— सबको हैरत में डाल देती है/ माँ मेरी सब सँभाल लेती है।
कुमार शैलेंद्र वशिष्ठ ने हास्यरस परोसा— पप्पू! तुम ट्रैक्टर हम ट्राली/ चलना चाहें संग तेरे हम, पर हैं बिल्कुल खाली।
संस्थाध्यक्ष के.पी. त्रिपाठी "पुंज" ने मातृ - दिवस पर सभी माताओं को नमन करते हुए दोहा प्रस्तुत किया—
माँ के जैसा कुछ नहीं, क्या दौलत क्या नाम/ चरण छुए और हो गए,तीरथ चारों धाम।।
युवा कवि कुलदीप शुक्ल 'दीप' ने अपने भाव कुछ इस प्रकार व्यक्त किए—
शाख पर जब परिंदे चहकने लगे/ सुन के भवरों के तन-मन भटकने लगे।
निशा सिंह 'नवल' ने गीत पढ़ा—
सिक्कों में चंद सारा संसार बिक गया/ ईमान बिक गया कहीं किरदार बिक गया।
संदीप कुमार पोला ने भाव व्यक्त किए—
शुक्ल पक्ष तू जल्दी आ.....।
वरिष्ठ कवि दिनेश शुक्ल ने शृंगार रस का गीत सुनाया—
एक मधुर मुस्कान तुम्हारी, जीवन का आधार हो गया। इसके बाद बारी आई इं. राजीव वर्मा 'वत्सल' की जिन्होंने छंद पढ़ा— सँभले सँभाले रहें घर व हृदय दोनों/ दोनों द्वार पर मित्र ध्यान रखिए सदा।
वरिष्ठ गीतकार दीनानाथ मिश्र "किंकर" ने प्रेमगीत कुछ यूँ सुनाया — प्यार है बंदगी कुछ सुना लीजिए/ दुख का साथी सफर का बना लीजिए/ दर्द का भार ढोने से क्या फायदा/ गीत है ज़िन्दगी गुनगुना लीजिए।
विशिष्ट अतिथि रवीन्द्र नाथ तिवारी ने सैनिकों के कष्टों को हरने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हुई पंक्तियाँ पढ़ीं—
प्रभु तुम हरो सैन्य की पीर/ मात-पिता, पत्नी, सुत, माया, त्याग खड़ा बलवीर /याद सताती भले हो घर की, लिए खड़ा शमशीर।
इसके बाद मुख्य अतिथि नरेंद्र भूषण का आह्वान किया गया जिन्होंने जीवन जीने की कला पर प्रकाश डालती हुई पंक्तियाँ सुनायीं— जीवन है संगीत साथियों! जीवन है संगीत/ जीवन अमृत पीना सीखो, इसके सँग में जीना सीखो/ हो कोई संघर्ष मिलेगी आखिर तुम को जीत/ जीवन है संगीत.....
कार्यक्रम के अध्यक्ष अनिल कुमार शर्मा ने अध्यक्षीय कविता पढ़ते हुए मानव को आगाह किया— जीवन में है बहुत कुछ करने को/ फिर क्यों अातुर हो लड़ने को/ मिट्टी का सोना बना सकते हो तुम/ फिर मिट्टी पलीद क्यों करने को?
सभी कवियों ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं की खूब तालियाँ बटोरीं। कार्यक्रम के बीच में संस्था द्वारा दो सदस्यों/रचनाकारों संदीप कुमार पोला और अनिल कुमार शर्मा को उनके जन्मदिन के अवसर पर पुष्पहार पहनाकर व प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया।
अंत में संस्था अध्यक्ष कैलाश प्रकाश त्रिपाठी "पुंज" द्वारा आभार ज्ञापित कर गोष्ठी को अगले माह तक के लिए स्थगित कर दिया गया।