नवंबर में होने जा रहे 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच लोकसभा चुनाव की भी तैयारी जोरों पर हैं. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी अगले साल होने वाले आम चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने की कवायद में जुट गए हैं और वह इसके लिए अपनी खास सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस कर रहे हैं.
लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश लगातार बढ़ती जा रही है. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अपने पीडीए फॉर्मूले यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक के जरिए नई सोशल इंजीनियरिंग बनाने में जुटे हैं. समाजवादी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ ने लखनऊ में कश्यप-मल्लाह-बिंद-निषाद समाज के प्रतिनिधियों की बड़ी बैठक बुलाई है, जिसके तहत उनके मुद्दों पर मंथन करने के साथ-साथ जातिगत जनगणना के मुद्दे को सियासी धार देने की रणनीति पर चर्चा की जाएगी.
कश्यप-मल्लाह- बिंद- निषाद समुदाय ओबीसी के अतिपिछड़ा वर्ग में आते हैं, जो फिलहाल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मजबूती से जुड़े हुए है, जिन्हें अखिलेश यादव अपने साथ जोड़ने के कवायद में है. सपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजपाल कश्यप ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत करते बताया कि निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद और कश्यप समाज की पार्टी कार्यालय में बैठक बुलाई गई है, जिसमें अखिलेश यादव मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करेंगे. यह बैठक सामाजिक न्याय के मुद्दे और जातिगत जनगणना कराने की रणनीति को लेकर हो रही है.
OBC की अलग-अलग जातियों पर नजर
लोकसभा चुनाव को देखते हुए सपा ने ओबीसी की अलग-अलग जातियों को साधने की कोशिशें तेज कर दी है, जिसके लिए उनकी ताबड़तोड़ अंदाज में बैठकें होने लगी हैं. निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद और कश्यप समुदाय ओबीसी में अतिपछड़ा वर्ग में सबसे बड़ी संख्या है. ये राज्य में 5 से 6 फीसदी वोट हैं, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. यूपी के गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, मऊ संतकबीर नगर, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद, जौनपुर, फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर जिलों में निषाद वोटर अहम भूमिका में है.
उत्तर प्रदेश में जाति आधारित राजनीति करने वाली पार्टियों में एक निषाद पार्टी भी है, जो मुख्य रूप से निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, नोनिया, मांझी, गौंड जैसी करीब 17 जातियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद का बीजेपी के साथ गठबंधन होने के चलते बड़ी संख्या में निषाद समुदाय के लोगों की पसंद बीजेपी बनी थी. यही वजह रही कि सपा की सूबे में सीटें तो बढ़ीं, लेकिन सत्ता में वापसी नहीं कर सकी.
फिर से दोहरा सकते हैं पुरानी मांग
निषाद वोटों के सियासी समीकरण और राजनीतिक ताकत को देखते हुए अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले निषाद समुदाय के दिल जीतने की कोशिश में जुट गए हैं, जिसके तहत ही लखनऊ में निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद और कश्यप समाज के प्रतिनिधियों की बैठक कर रहे हैं. माना जा रहा है कि अखिलेश यादव इस बैठक में निषाद-कश्यप-बिंद-मल्लाह समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जे दिलाने का मांग को उठा सकते हैं, क्योंकि यह इस समुदाय की बहुत पुरानी मांग है. संजय निषाद भी इस मुद्दे को लेकर अपने समुदाय के बीच सियासी आधार मजबूत में सफल रहे, लेकिन बीजेपी के साथ जाने के बाद भी उसे पूरा नहीं करा सकें. ऐसे में अब सपा इस धार देने की रणनीति बनाई है.
बता दें कि साल 2004-2005 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने मल्लाह-निषाद-केवट-बिंग जाति को ओबीसी से एससी में शामिल करने के लिए केंद्र को एक प्रस्ताव भेजा था. तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसे मंजूरी नहीं दी और बाद में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार के आदेश को खारिज कर दिया. इसके बाद साल 2016 में अखिलेश यादव ने भी ऐसी ही कोशिश की लेकिन केंद्र ने इस मामले में फिर से कोई सहायता नहीं की. ऐसे में उनकी यह मांग अधूरी है, जिसे अखिलेश यादव अब दोबारा से धार देने के लिए कदम बढ़ा सकते हैं.