नागेंद्र रामचंद्र नाइक ने भटकल से चुनाव लड़ा और केवल 1,502 वोट हासिल किए. सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने तीन बार उनकी पदोन्नति की सिफारिश की है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाई कोर्ट के संभावित न्यायाधीश नागेंद्र रामचंद्र नाइक के कर्नाटक विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले के बारे में गलत राय बनाई हुई है. दिप्रिंट को इसकी जानकारी मिली है.
नाइक एक वकील हैं जिनके नाम की कॉलेजियम ने बार-बार हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति की सिफारिश की है. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने कहा कि कॉलेजियम—भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की अध्यक्षता वाला एक उच्चाधिकार प्राप्त पैनल जो हाई कोर्ट में पदोन्नति के लिए नामों का प्रस्ताव करता है, को नाइक के बारे में लगता है, जिन्होंने पिछले हफ्ते कर्नाटक चुनाव में जनता दल (सेक्युलर) के एक प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, को इससे बचना चाहिए था क्योंकि उनका नाम अभी भी न्यायपालिका से पारित होने के लिए केंद्र सरकार के पास लंबित था.
यह बात इसलिए भी ज़रूरी है कि क्योंकि पूर्व में भी जज के रूप में नाइक की पदोन्नति विवाद का विषय रही है. इस साल जनवरी में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मोदी सरकार की आपत्तियों के बावजूद तीसरी बार उनके नाम की सिफारिश की थी.
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के अन्य न्यायाधीश जस्टिस एस.के. कौल, के.एम. जोसेफ, अजय रस्तोगी और संजीव खन्ना हैं. जनवरी में तीसरी बार उनका नाम दोहराते हुए, कॉलेजियम ने जोर देकर कहा कि सरकार अदालत के ज्ञापन प्रक्रिया के अनुसार उनकी नियुक्ति को अधिसूचित करने के लिए बाध्य है.
नाइक ने भटकल से चुनाव लड़ा और केवल 1,502 वोट हासिल किए—इस विधानसभा सीट को मिले कुल मतों के 1 प्रतिशत से भी कम. एक सूत्र ने कहा, “आदर्श रूप से, उन्हें चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था, खासकर तब जब उनका नाम पदोन्नति के लिए विचाराधीन हो और अगर वे ऐसा करना भी चाहते थे तो उन्हें कॉलेजियम को इस बारे में सूचित करना चाहिए था.” घटनाक्रम से जुड़े एक अन्य सूत्र ने कहा कि कॉलेजियम इस बात पर विचार कर रहा है कि नाइक की पदोन्नति के लिए अपनी सिफारिश को वापस लिया जाए या नहीं. इसने कहा, “कॉलेजियम के सदस्यों के बीच चर्चा हुई है, लेकिन अंतिम फैसले का इंतज़ार है.”
कॉलेजियम की सिफारिश, सरकार की आपत्तियां
नाइक के नाम की पहली बार अक्टूबर 2019 में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने सिफारिश की थी. 2 मार्च 2021 को मोदी सरकार की अपनी आपत्तियों के बाद नाइक की फाइल वापस करने के बाद इस संकल्प को फिर दोहराया गया. 1 सितंबर 2021 को, सीजेआई एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने दूसरी बार उनके नाम को दोहराया, लेकिन नवंबर 2022 में केंद्र सरकार ने फिर से नाइक को नियुक्त करने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की.
इस साल जनवरी में कॉलेजियम ने तीसरी बार उनका नाम दोहराते हुए व्यापक प्रतिक्रिया लिखी थी. इस पत्र में इसने केंद्रीय कानून मंत्रालय को याद दिलाया कि न्यायिक फैसले और एमओपी सरकार को कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों की नियुक्ति को अधिसूचित करने के लिए बाध्य करते हैं. एमओपी पर शीर्ष अदालत के 1993 के फैसले का हवाला देते हुए कॉलेजियम ने कहा कि इसकी पुनरावृत्ति सरकार के लिए बाध्यकारी है.
अधिक नामों की सिफारिश की
इस बीच शीर्ष पांच न्यायाधीशों के एससी कॉलेजियम ने शीर्ष अदालत में नियुक्तियों के लिए दो सिफारिशें की हैं. इन सुझाए गए दो नामों में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता के.वी. विश्वनाथन हैं. 16 मई 1966 को जन्मे विश्वनाथन की नियुक्ति को यदि सरकार मंजूरी दे देती है तो वे 25 मई 2031 तक शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में पद पर रहेंगे. वह 11 अगस्त 2030 को न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की सेवानिवृत्ति के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश भी बन पाएंगे. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में कहा, “उनका व्यापक अनुभव और गहरा ज्ञान सुप्रीम कोर्ट के लिए एक महत्वपूर्ण मूल्य वृद्धि प्रदान करेगा.”
यदि मंजूरी मिल जाती है, तो विश्वनाथन बार से सीधे नियुक्त होने वाले दसवें वकील होंगे और जस्टिस एस.एम. सीकरी (सेवानिवृत्त), यू.यू. ललित (सेवानिवृत्त) और पी.एस. नरसिम्हा (अभी सीजेआई बनने के लिए कतार में) के बाद सीजेआई बनने वाले चौथे व्यक्ति होंगे.
कॉलेजियम ने जिस दूसरे नाम की सिफारिश की है, वह आंध्र प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा का है, जिनके मूल छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के हैं. कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में कहा, “छत्तीसगढ़ राज्य को प्रतिनिधित्व के अलावा, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की नियुक्ति उनके अर्जित ज्ञान और अनुभव के संदर्भ में एक मूल्यवर्धन प्रदान करेगी. न्यायमूर्ति मिश्रा ईमानदार न्यायाधीश हैं.” जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और एम.आर. शाह की रिटायरमेंट के बाद रिक्त हुअ पदों को देखते हुए दो नामों की सिफारिशें की गई हैं. इनमें माहेश्वरी पिछले सप्ताह सेवानिवृत्त हुए, जबकि शाह सोमवार को रिटायर हुए थे.
दो न्यायाधीशों के कार्यालय छोड़ने के साथ, शीर्ष अदालत की कार्य शक्ति 34 से घटकर 32 हो गई थी. जुलाई के दूसरे हफ्ते तक चार और रिक्तियां होने की उम्मीद है.