Thursday, 28 September 2023 00:00
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, समझौते के तहत दोनों देशों के बीच सहमति बनी थी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर न तो भारत और न ही चीन की ओर से सेना इकट्ठी की जाएगी. अगर एलएसी पर कोई भी पक्ष एक निश्चित संख्या से अधिक सैनिक लाता है, तो वह दूसरे पक्ष को सूचित करेगा.
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में जून 2020 में भारत और चीन की सेना के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं और संभवत: ये मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है. ये बातें विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेश संबंध परिषद में भारत-चीन संबंधों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कहीं. उन्होंने कहा, अगर दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच इस हद तक तनाव है, तो इसका असर हर किसी पर पड़ना तय है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जिस तरह से चीन अपने सैनिक जमा कर रहा है उससे तनाव कम होने के बजाय और भी बढ़ता जा रहा है. उन्होंने कहा कि एलएसी को लेकर चीन की ओर से जो भी जानकारी दी जा रही है वह वास्तव में तर्कसंगत नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत लगातार कह रहा है कि पूर्वी लद्दाख से लगती सीमा पर हालात सामान्य नहीं हैं. सीमा पर शांति और सौहार्द दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिए बेहद अहम हैं.
चीन के साथ रिश्ते नहीं हैं सामान्य
चीन में साल 2009 से 2013 तक भारत के राजदूत रह चुके एस जयशंकर ने कहा, चीन के साथ रिश्ते की कमजोरी ये है कि आपको कभी भी ये पता नहीं चल पाता कि वो क्या करने जा रहे हैं. यही कारण कि चीन के साथ रिश्ते में हमेशा ही अस्पष्टता रहती है. जयशंकर ने कहा कि लद्दाख में जो घटना घटी उसको लेकर चीनी पक्ष ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग बात रखी है लेकिन उनमें से कोई भी सही नहीं है. गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से कई स्थानो पर गत तीन साल से गतिरोध बना हुआ है. कई दौर की राजनयिक और सैन्य स्तर की वार्ता के बाद कई स्थानों से दोनों देशों के सैनिक पीछे हटे हैं.
चीन के साथ सामान्य रिश्ते की बात बेमानी
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, जो देश रिश्तों में स्पष्टता नहीं रखता है ऐसे देश के साथ सामान्य रिश्तों की बात करता बहुत कठिन है. यही कारण है कि पिछले तीन सालों से जारी तनाव को अभी तक सामान्य नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच निश्चित रूप से उच्च स्तर का सैन्य तनाव है. चीन के इस तरह की हरकत से भारत में चीन के प्रति धारणा पर भी असर पड़ा है. जयशंकर ने कहा कि मुझे लगता है कि चीन इसे तात्कालिन मुद्दा बनाकर रखना चाहता है. ऐसे में ये मसला अपेक्षा से लंबा खिंच सकता है.
1988 के बाद भारत-चीन संबंध हुए सामन्य
उन्होंने कहा, साल 1962 में दोनों देशों के बीच जंग हुई. उसके बाद सैन्य घटनाएं भी हुईं लेकिन 1975 के बाद सीमा पर कभी भी लड़ाई में कोई हताहत नहीं हुआ था. उन्होंने कहा कि साल 1988 के बाद भारत और चीन के संबंध और भी ज्यादा सामान्य हो गए जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन चले गए. उन्होंने बताया कि सीमा पर स्थिरता के लिए साल 1993 और साल 1996 में चीन के साथ दो समझौते हुए, जो विवादित हैं. उन्होंने कहा, उन मुद्दों पर बातचीत चल रही है.
2020 में चीन ने सीमा पर तैनात किए सैनिक
उन्होंने कहा कि समझौते के तहत दोनों देशों के बीच सहमति बनी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर न तो भारत और न ही चीन की ओर से सेना इकट्ठी की जाएगी. अगर एलएसी पर कोई भी पक्ष एक निश्चित संख्या से अधिक सैनिक लाता है, तो वह दूसरे पक्ष को सूचित करेगा. मंत्री ने कहा, ये पूरी तरह से स्पष्ट समझौता था. 2020 में जब भारत कोविड-19 लॉकडाउन के दौर से गुजर रहा था तब बड़ी संख्या में चीन सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर बढ़ रहे थे. उन्होंने कहा कि चीन की इस हरकत को देखते हुए हमें भी सीमा पर सैनिकों की संख्या बढ़ानी पड़ी. जयशंकर ने कहा, हमने चीनियों को आगाह किया कि ऐसी स्थिति समस्याएं पैदा कर सकती है और फिर जून 2020 के मध्य में ऐसा ही हुआ.