Thursday, 26 October 2023 00:00
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मोदी सरकार की ओर से संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद से एक देश एक चुनाव का मुद्दा फिर से गरम हो गया है. सरकार की ओर से विशेष सत्र की जानकारी तो दी गई है, लेकिन सत्र के दौरान किस मुद्दे पर चर्चा होगी इसे लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है. सूत्रों का कहना है कि सरकार विशेष सत्र में 'एक देश-एक चुनाव' के मुद्दे पर कदम आगे बढ़ा सकती है.
केंद्र सरकार ने ‘एक देश-एक चुनाव’ पर बड़ा कदम उठाया है. केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई है. यह समिति ‘एक देश-एक चुनाव’ के पर विचार कर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेगी. लोकसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने के फैसले के बाद से ही ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर कयास लग रहे थे.
माना जा रहा है कि विशेष सत्र में मोदी सरकार ‘एक देश एक चुनाव’ को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है. एक देश और एक चुनाव का सीधा और साफ मतलब है कि आम चुनाव के साथ-साथ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को साथ कराना.
देश में कब-कब हुए हैं एक साथ चुनाव?
एक देश एक चुनाव कराने की बात आज भले ही कही जा रही हो, लेकिन देश में इससे पहले चार बार लोकसभा और राज्यों के चुनाव साथ हो चुके हैं. 1947 में मिली आजादी के बाद भारत में 1951 से 1967 तक देश में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ ही हुए थे. देश में पहला चुनाव 1951-52 में ही हुआ था इस दौरान भी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ ही कराए गए थे. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लगातार चार बार देश में लोकसभा और राज्यों के विधानसभा के चुनाव साथ हुए थे.
1967 के बाद क्यों लग गया एक देश एक चुनाव पर ब्रेक?
देश में लगातार चार बार एक साथ चुनाव होने के बाद 1967 से इसका पैटर्न बदलने लगा. 1967 में यूपी में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था. तब राज्य में 423 सीटें थी और कांग्रेस के खाते में 198 सीटें आईं थी जबकि सरकार बनाने के लिए 212 सीटों की जरुरत थी. दूसरे नंबर पर जनसंघ पार्टी थी जिसे 97 सीटें मिली थीं, लेकिन कांग्रेस ने 37 निर्दलीय सदस्यों और कुछ छोटी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना ली और सीपी गुप्ता मुख्यमंत्री बने. चौधरी चरण सिंह की बगावत के चलते एक ही महीने में गुप्ता की सरकार गिर गई.
इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने भारतीय जनसंघ और संयुक्त समाजवादी के साथ मिलकर सरकार बना ली, लेकिन एक ही साल बाद गठबंधन में अनबन होने की वजह से इन्होंने भी इस्तीफा दे दिया और विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर दी. धीरे-धीरे यही सिलसिला कई और राज्यों में शुरू हो गया.
1971 में समय से पहले ही इंदिरा ने करवा दिया था चुनाव
- देश में 1967 में एक साथ चुनाव हुए थे ऐसे में 1972 में आम चुनाव होना था, तब प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीय करण किया और पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग करने में अहम भूमिका निभाई जिसकी वजह से देश में इनकी लोकप्रियता बढ़ गई थी. ऐसे में इंदिरा गांधी ने समय से पहले 1971 में ही आम चुनाव कराने का फैसला किया. इस तरह से एक देश एक चुनाव की जो व्यवस्था चली आ रही थी उस पर ब्रेक लग गया. इसके बाद से कई राज्यों में सरकारें गिरती रहीं और बीच-बीच में चुनाव होते रहे.
- 1967 के एक दशक के बाद 1983 में चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था. हालांकि, आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा था कि तत्कालीन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला किया था. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भी इसपर जोर दिया गया था, 1999 में विधि आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए अपनी रिपोर्ट दी थी.
- बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वह राज्य सरकारों के लिए स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक साथ चुनाव कराने का एक तरीका विकसित करने का प्रयास करेगी.
- 2015 में कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने भी एक देश एक चुनाव की सिफारिश की थी. इसके बाद से समय-समय पर एक देश एक चुनाव को लेकर चर्चा होती रही लेकिन सरकार किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाई.
- अगस्त 2018 में एक देश-एक चुनाव पर विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी. लॉ कमिशन की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं. विधि आयोग ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कम से कम पांच संवैधानिक सिफारिशों की आवश्यकता होगी, इसी के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इस दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए थे.
पीएम मोदी ने 2018 में एक देश एक चुनाव का जिक्र किया
एक देश एक चुनाव की बहस को उस समय और हवा मिल गई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 इसका जिक्र किया. एक कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी कहा था कि इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए कि क्या देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं? इतना ही नहीं उन्हें इसके लिए एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी जिसमें एक देश-एक चुनाव पर राजनीतिक दलों से उनकी राय जानने का प्रयास किया गया.
पिछले आम चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने कहा था कि 2019 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है क्योंकि इसके लिए कई कानूनी प्रक्रियाएं हैं जिसे सरकार को पूरा करना पड़ेगा. हालांकि, 2020 में कोरोना महामारी की वजह से यह मुद्दा फिर से शांत हो गया.