Tuesday, 26 September 2023 00:00
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2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल बेल्ट में बीजेपी का प्रदर्शन कमजोर था. ऐसे में तोमर के चुनाव लड़ने से ये मैसेज जाएगा कि इस बेल्ट से राज्य का सीएम बन सकता है. लिहाजा 20-22 सीटों पर असर पड़ सकता है.
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब तक कुल 230 सीटों में से 78 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है. सोमवार को जारी बीजेपी उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में शामिल नामों को लेकर पूरे राज्य में चर्चा शुरु हो गई है. दरअसल बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चार सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतारा है.
इन तीन केंद्रीय मंत्रियों में नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते शामिल हैं. वहीं चार सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक और उदय प्रताप सिंह को भी विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा गया है. अब चर्चा यह हो रही है कि आखिर बीजेपी ने इन पर दांव क्यों लगाया और ये इतने जरूरी क्यों हैं?
1- नरेंद्र सिंह तोमर ठाकुर हैं और ग्वालियर चंबल बेल्ट के कद्दावर नेता हैं. केंद्र में कृषि मंत्री के साथ ही बीजेपी में इनको मध्यप्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक भी बनाया है. इनको सरकार से लेकर संगठन तक का अनुभव है. तोमर का सीएम शिवराज सिंह चौहान से अच्छा संबंध है और ये शिवराज की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. साथ ही 2008 से 2013 तक मध्यप्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष का पद भी संभाल चुके हैं. इनके अध्यक्ष रहते बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी.
तोमर का ग्वालियर चंबल के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं में अच्छी पकड़ और कनेक्ट है. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से तोमर का वर्चस्व जरूर थोडा खतरे में आया था पर अब बीजेपी ने उनको विधानसभा चुनाव में उतारकर खुद की ताकत साबित करने का मौका दिया है. पिछले विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल बेल्ट में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत कमजोर था. ऐसे में तोमर के चुनाव लड़ने से ये मेसेज भी जाएगा कि इस बेल्ट से राज्य का सीएम बन सकता है. लिहाजा इस बेल्ट की 20-22 सीटों पर असर पड़ सकता है.
2- प्रह्लाद सिंह पटेल ओबीसी हैं. बीजेपी ने इनके भाई जालम सिंह का टिकट काटकर उसी सीट से इनको चुनाव मैदान में उतारा है. ये मप्र के बडे ओबीसी नेता है, जो लोधी राजपूत समुदाय से आते हैं. अटल सरकार में मंत्री रह चुके हैं. इन्होंने अपना राजनीतिक करियर छात्रसंघ नेता के तौर पर शुरू किया था. एक समय उमा भारती के बहुत ही करीबी थे और 2005 में उनके साथ बीजेपी को छोडकर चले गए थे. हालांकि फिर तीन साल बाद बीजेपी में घर वापसी की थी. इनके चुनाव लड़ने से आस-पास कि लगभग एक दर्जन सीटों पर असर पड़ेगा.
3- फग्गन सिंह कुलस्ते: ये आदिवासी नेता और अपने समाज में अच्छी पकड़, जिसकी बदौलत जीत का सिलसिला जारी रखा है. राज्य की 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आऱक्षित हैं और 100 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी वोटर हार-जीत का फैसला करते हैं. ऐसे में बीजेपी ने फग्गन सिंह कुलस्ते को चुनावी मैदान में उतारकर कमजोर सीटों पर जीत का परचम लहराने की कोशिश की है.
4- गणेश सिंह: इनका पूरा नाम गणेश सिंह पटेल है, ये सतना से लगातार चौथी बार के सांसद हैं. ये ओबीसी समाज से आते हैं. ओबीसी और मंडल कमीशन की राजनीति के सहारे इन्होंने राजनीति की सींढ़िया चढ़ी. जनता दल से राजनीति की शुरूआत की और जिला पंचायत सदस्य और ज़िला पंचायत अध्यक्ष रहे. गणेश सिंह को उमा भारती 2004 में बीजेपी में लाई और लोकसभा का टिकट दिलाया. तबसे से लेकर अब तक गणेश सिंह लगातार चुनाव जीत रहे हैं और इनको विंध्य इलाके से अर्जुन सिंह के परिवार की पकड़ को खत्म करने का श्रेय जाता है.
5- राकेश सिंह: जबलपुर से सांसद राकेश सिंह को बीजेपी ने जबलपुर पश्चिम विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. ये वो सीट है जहां बीजेपी पिछले लगातार दो बार से चुनाव हार रही है और इस बार यहां कमल खिलाने की ज़िम्मेदारी राकेश सिंह की है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी और सुप्रीम कोर्ट के वकील विवेक तन्खा को हराया था. राकेश सिंह भी बीजेपी में संगठन की सींढ़िया चढ़कर यहां तक पहुंचे हैं. राकेश सिंह ज़िलाध्यक्ष, सांसद, प्रदेश महामंत्री, प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और अभी लोकसभा में बीजेपी के मुख्य सचेतक हैं.
6- उदयप्रताप सिंह होशंगाबाद से सांसद हैं. 2013 में कांग्रेस से बीजेपी में ये कहते हुए आए थे कि राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस कभी आगे नहीं बढ सकती. 2014 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. ये सीट बीजेपी का परंपरागत गढ़ रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में उदय प्रताप सिंह ने होशंगाबाद सीट मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीता.
7- रीति पाठक सीधी लोकसभा सीट से दूसरी बार की सांसद हैं. सौम्य लेकिन तेजतर्रार नेता मानी जाती हैं. एलएलबी की डिग्री है. सांसद बनने से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. इनके विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकी लोकसभा के अंतर्गत आने वैली 8 विधानसभा सीटों पर अच्छा असर पड़ेगा.