Thursday, 21 December 2023 00:00
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नई दिल्ली। इस शीतकालीन सत्र में लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों का ऐतिहासिक तौर पर निलंबन हुआ है. विपक्ष इस पर आगबबूला है. वहीं सरकार इसे विपक्षी सांसदों के सदन में बर्ताव से जोड़ रही है. आईये जानते हैं कि मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार सांसदों के निलंबन में कहां खड़ी नजर आती है?
संसद में हुई सुरक्षा चूक मामले को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध जारी है. भारी हंगामे के बीच संसद से सांसदों का निलंबन आज भी जारी रहा. सोमवार और मंगलवार को कुल मिलाकर अब तक कुल 141 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है. लोकसभा और राज्यसभा के 46-46 सांसद कल निलंबित किए गए थे. वहीं आज लोकसभा के 49 सांसद पूरे सत्र के लिए निलंबित हो गए हैं. इसी के साथ सांसदों के निलंबन के सारे रिकार्ड टूट गए हैं, क्योंकि इससे पहले 1989 में एक दिन में 63 सांसदों को निलंबित किया गया था लेकिन यहां सोमवार को एक अकेले दिन 92 सांसदों को सदन से बाहर कर दिया गया.ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विपक्ष इस वाकये से आक्रोशित हो कर 1989 के इतिहास को दोहराएगा?
दरअसल, विपक्षी सांसद संसद सुरक्षा चूक मामले पर सदन में पीएम मोदी की मौजूदगी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बयान की मांग कर रहे हैं. साथ ही विपक्षी सांसद इस मामले पर सदन में चर्चा और आरोपियों के लिए पास की सुविधा प्रदान करने वाले बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. वहीं, सत्तापक्ष का कहना है कि विपक्ष संसद की कार्यवाही रोक समय बर्बाद कर रहा. संसद की कार्यवाई में बाधा उत्पन्न करने वाले सांसदों के खिलाफ स्पीकर ने निलंबन का कदम उठाया है. यह पहली बार है जब दो दिन के भीतर 141 सांसदों को सस्पेंड किया गया है।
मोदी सरकार बनाम मनमोहन
नरेंद्र मोदी सरकार में अलग-अलग समय पर लोकसभा और राज्यसभा स्पीकर ने कुल मिलाकर 26 बार सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई की है. मोदी सरकार में कुल 282 सांसदों को निलंबित किया गया, जिसमें 94 राज्यसभा सदस्य और 188 लोकसभा सदस्य शामिल थे. वहीं, मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए कार्यकाल में 2004 से लेकर 2014 तक 43 सांसद निलंबित किए गए थे, जिसमें 7 राज्यसभा सदस्य और 36 लोकसभा सदस्य थे. इस तरह मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार में कई गुना ज्यादा सांसदों का निलंबन हुआ है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सांसदों के निलंबन का आकड़ा ज्यादा रहा है।
पहली बार इतनी संख्या में निलंबन
संसद में एक दिन में इतने सांसदों का निलंबन पहली बार हुआ है. संसद के इस शीतकालीन सत्र में सोमवार और मंगलवार को मिलाकर कुल 141 सांसदों को सस्पेंड किया गया है. इससे पहले पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 1989 में 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. इस तरह 1989 में एक दिन में सस्पेंड होने वाले सांसदों की संख्या का रिकॉर्ड टूट गया है. संसद की सुरक्षा चूक मामले में विपक्ष मांग कर रहा था कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बयान दें और चर्चा करें. इसी बात को लेकर विपक्ष और सत्तापक्ष में गतिरोध बना बरकरार है।
1989 में क्यों सांसद निलंबित हुए थे?
साल 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, उनके कार्यकाल में एक दिन 63 सांसदों को निलंबित किया गया था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की जांच के लिए बनी जस्टिस ठक्कर आयोग की रिपोर्ट को 15 मार्च 1989 में संसद में पेश किया था. विपक्ष राजीव सरकार को बोफोर्स मुद्दे पर घेर रहा था और हंगामा कर रहा था. ऐसे में 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया, जो अब तक का लोकसभा में सांसदों के निलंबन का एक रिकॉर्ड है, यह रिकॉर्ड शीतकालीन सत्र के 18 दिसंबर 2023 को 78 सांसदों के निलंबन के साथ टूट गया. हालांकि, अब और उस समय के निलंबन में मुख्य अंतर यह है कि इन सांसदों को हफ्ते के बाकी बचे दिनों के लिए निलंबित किया गया था, जो कि तीन दिन था. जबकि इस बार, सासंदों को सदन के बाकी सत्र के लिए ही निलंबित कर दिया गया है. हालांकि. उस समय सांसदों द्वारा अध्यक्ष से माफी मांगने के एक दिन बाद निलंबन रद्द कर दिया गया था।
34 साल पुराना इतिहास दोहराया जाएगा?
मोदी सरकार और विपक्ष के बीच जारी गतिरोध के चलते संसद के दोनों सदनों के 141 सांसदों के निलंबन को विपक्ष बड़ा मुद्दा बनाने में जुटा है. यह निलंबन ऐसे समय हुआ है, जब विपक्षी दलों वाले प्छक्प्। गठबंधन की बैठक हो रही है. बैठक में सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है, जिसमें कोई बड़ा फैसला विपक्ष ले सकता है. 1989 में राजीव गांधी की 400 से ज्यादा सांसदों की प्रचंड बहुमत की सरकार थी, विपक्ष के 63 सांसदों को सदन से सस्पेंड कर दिया गया था. इसके बाद विपक्ष बोफोर्स मुद्दे पर घेरते हुए विपक्षी दलों ने सांसदों ने लोकसभा से जिस तरह सामूहिक इस्तीफा दिया था. 1989 जैसा ही कदम विपक्ष इस बार भी उठाएगा।
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर सहमति बनी तो लोकसभा से सामूहिक इस्तीफा जैसा कदम भी उठाया जा सकता है. त्यागी कहते हैं, हालांकि अभी इस मुद्दे पर विचार नहीं हुआ है, लेकिन जिस तरह सरकार विपक्ष के नेताओं और सांसदों को निशाना बना रही है, उसका जवाब देना होगा. राजीव गांधी सरकार ने तत्कालीन विपक्ष को संसद में अपनी आवाज नहीं उठाने दी थी, तब पूरे विपक्ष ने लोकसभा से सामूहिक इस्तीफा दिया था और उसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार मिली थी. ऐसे में विपक्ष में सहमति बनती है तो फिर से इतिहास दोहाराया जा सकता है।