Monday, 04 December 2023 00:00
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मध्य में भाजपा बंपर जीत के करीब है. यहां कमल पर न कमलनाथ का जादू चला और न ही कांग्रेस कहीं हावी नजर आई. प्रदेश में भाजपा दो तिहाई बहुमत के करीब जाती दिख रही है. पार्टी की इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर अमित शाह की अचूक रणनीति मानी जा रही है. प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाने का जिम्मा शाह ने अपने ही कंधों पर उठा रखा था.
मध्य प्रदेश का चुनाव भाजपा के लिए बेहद टफ माना जा रहा था, लेकिन यहां भाजपा ने प्रचंड बहुमत लाकर सभी राजनीतिक समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है. पार्टी समर्थक उत्साहित हैं और जीत का जश्न मना रहे हैं. इस जीत का श्रेय अमित शाह की अचूक रणनीति को दिया जा रहा है. माना जा रहा है कि यदि शाह की अचूक रणनीति काम नहीं करती तो मध्य प्रदेश में कमल पर कमलनाथ हावी भी हो सकते थे.
मध्य प्रदेश में चुनाव का ऐलान होने से पहले ही ये माना जा रहा था कि राज्य में कांग्रेस के साथ मुकाबला करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा. 2018 में झटका खाई पार्टी ने इसके लिए चुनाव से कई माह पहले ही तैयारियां शुरू कर दी थीं, पीएम मोदी भी लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे थे, लेकिन सबसे खास जिम्मेदारी थी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पास. इस जिम्मेदारी को शाह ने बाखूबी निभाया और उस अचूक रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरे, जिसके आगे कांग्रेस चारों खाने चित हो गई.
क्या थी शाह की वो रणनीति
मध्य प्रदेश में चुनाव का ऐलान होने से पहले ही चुनाव की कमान अमित शाह ने संभाली थी. इसके अलावा अपने सबसे भरोसेमंद भूपेंंद्र यादव को प्रभारी बनाया और अश्विनी वैष्णव को सहप्रभारी की जिम्मेदारी दी गई. चुनाव का ऐलान होने से पहले ही वह ये परख चुके थे कि आखिर प्रदेश में जीत के लिए सबसे ज्यादा जरूरी क्या है? चुनाव में बस इसे अंजाम तक पहुंचाने की बारी थी. इसके लिए शाह ने सबसे पहले एकजुटता का मंत्र दिया और इसे सफल बनाने के लिए प्रदेश में सीएम फेस की जगह पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. इसका भाजपा को दोहरा फायदा मिला. पीएम मोदी के चेहरे पर पार्टी को खूब वोट मिले और वो वोट बैंक भी दूर नहीं गया जो शिवराज सिंह चौहान को सीएम फेस घोषित करने से पार्टी से दूरी बना सकता था.
जीत की गारंटी बनने वाली सीटों पर फोकस
इसके बाद उन सीटों पर फोकस किया गया जो भाजपा की जीत की गारंटी बन सकती थीं. काफी हद तक भाजपा इसमें सफल होती नजर आ रही है. खासतौर से भाजपा ने मालवा निमाड़ अंचल में उन सीटों पर तैयारी की जहां भाजपा कमजोर थी.यहां शाह ने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी और उन्हें पार्टी की जीत का मंत्र दिया था. सिर्फ मालवा निमाड़ नहीं बल्कि ग्वालिचर चंबल संभाग की 34 सीटों पर भी शाह ने पूरा फोकस रखा. बेशक यह संभाग ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है, लेकिन शाह यहां भी किसी तरह की ढील देने में मूड में नजर नहीं आए. वह लगातार यहां के पदाधिकारियों के संपर्क में रहे और नेताओं के साथ बैठकें करते रहे. पार्टी की ओर से भाजपा की सभी सीटों की तीन कैटेगरी निर्धारित की गई, इनमें जीतने वाली, आंशिक जीतने वाली और हारने वाली.इसमें उन सीटों पर विशेष काम किया गया जहां पिछली बार भाजपा कम मार्जिन से हारी थी.
दो तिहाई बहुमत पर जोर, पदाधिकारियों से सीधा संपर्क
अमित शाह पदाधिकारियों के सीधे संपर्क में रहे. मध्य प्रदेश का ऐसा कोई संभाग नहीं था जहां अमित शाह ने बैठक न की हो. उन्होंने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंंग कीं और उन्हें जीत का मंत्र दिया.केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का फोकस सिर्फ मध्य प्रदेश की जीत पर नहीं था, बल्कि वह पहले दिन से ही दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल करने की बात कह रहे थे. जुलाई माह में ही जब इंदौर में बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन आयोजित किया गया था, तब ही अमित शाह ने ये ऐलान कर दिया था कि मध्य प्रदेश में भाजपा दो तिहाई बहुमत के साथ फिर सरकार बनाएगी. अब शाह का वो वादा सच होता साबित हो रहा है.
‘फूफा’ नहीं डाल पाए असर
मध्य प्रदेश में अमित शाह ने टिकट वितरण की पूरी कमान दिल्ली के हाथ में रखी. प्रदेश कमेटी से सजेशन लिए गए लेकिन उन पर मुहर संसदीय समिति ने ही लगाई. जो टिकट फाइनल हुआ उसे तमाम विरोध के बावजूद बदला नहीं गया. शाह कीरणनीति कितनी पुख्ता थी इसकी एक बानगी अक्टूबर आखिर में ही देखने को मिल गई थी, तब अमित शाह ने साफ तौर पर कह दिया था कि ‘नाराज फूफाओं को मनाने की जरूरत नहीं है, अगर ये मान रहे हैं तो ठीक है वरना अपने आप ही 10 नवंबर से पार्टी का प्रचार करते दिखेंगे. यहां अमित शाह का साफ संदेश उन नेताओं के प्रति था जो टिकट न मिलने पर बगावत का मन बना चुके थे. हालांकि अमित शाह ने बाद में ऐसे नेताओं से संपर्क करने को जरूर कहा था, ताकि वह अपना नामांकन वापस ले लें, शाह ने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ती है तो वह खुद ऐसे नेताओं से बात करेंगे, शाह ने ऐसा किया भी.
डबल इंजन सरकार के काम
अमित शाह की रणनीति का प्रमुख हथियार डबल इंजन की सरकार और उसके विकास कार्य भी थे, शाह ने मध्य प्रदेश में जब भी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक की तो नेताओं से कहा कि सीधे जनता से मिलें, जिन्हें डबल इंजन सरकार का लाभ मिला है, उनसे संपर्क करें. लोगों को सरकार के काम गिनाएं और बताएं कि डबल इंजन सरकार के क्या फायदे हैं. ग्वालियर चंबल संभाग में तो उन्होंने जिलाध्यक्षों को टास्क दिया और वार्डों में जाकर भाजपा के काम गिनाने और स्टीकर लगाने के लिए कह दिया था. शाह ने पहले ही कह दिया था कि विधानसभा चुनाव साधारण नहंी है. यह चुनाव ही प्रदेश के विकास को गति देगा, जिसे मिलजुलकर लड़ना है.