लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बीजेपी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने दलित वोटर्स को अपने खेमे में करने के लिए मायावती को घेरने की रणनीति बनाई है. बीजेपी और कांग्रेस ने इसके लिए 'कांशीराम प्लान' तैयार किया है. कांशीराम ने ही बीएसपी बनाई थी.
कुछ दिनों पहले मायावती ने बीएसपी के वोटर्स से एक अपील की थी. उन्होंने कहा था कि दलित समाज के लोग या तो वोट न करें या फिर नोटा में वोट डाल दें. घोसी उप चुनाव के लिए बीएसपी की बॉस मायावती की ये अपील उनके ही समर्थकों ने ठुकरा दी. ये बीएसपी के लिए खतरे की बड़ी घंटी है. यहीं से समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी के लिए उम्मीदों का एक नया रास्ता खुल गया है. ये रास्ता है मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का.
लोकसभा के चुनाव सर पर हैं. सबको पता है जो यूपी की बाज़ी जीतेगा वहीं दिल्ली पर राज करेगा. यूपी में लोकसभा की 80 सीटों के लिए दलित वोटरों को अपना बनाने के लिए सबने अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर ली है. कमाल की बात ये है कि बीजेपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने दलित वोट के लिए कांशीराम वाली प्लानिंग की है. कांशीराम ने ही बीएसपी बनाई थी.
दलित जोड़ों अभियान पर बीजेपी का मंथन
सबसे पहले बात करते हैं यूपी की सबसे ताकतवर पार्टी बीजेपी की. पिछले दो दिनों से पार्टी के सभी सांसद, विधायक, संगठन के पदाधिकारी और बाकी जिम्मेदार नेता दलित जोड़ों अभियान पर मंथन कर रहे हैं. पार्टी की रणनीति के दो फार्मूले हैं. लोकसभा की 17 सुरक्षित सीटों के लिए अलग तैयारी और बाकी 63 सीटों के लिए दूसरी तरह की योजना. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर दलित समाज के लोगों को जोड़ने की योजना बनाई गई है.
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल के अपने लखनऊ दौरे में इस बारे में कुछ जरूरी सुझाव दिए थे. संगठन के लिहाज़ से बीजेपी ने यूपी को छह हिस्सों या फिर यूं कह लें कि क्षेत्रों में बांट रखा है. इन सभी क्षेत्रों में बीजेपी नेताओं की बैठक हुई. बैठक के बाद तय हुआ कि लोकसभा की सभी 80 सीटों पर दलित सम्मेलन आयोजित किया जाएगा. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और संगठन मंत्री धर्मपास सिंह सैनी ने मिलकर दलित सम्मेलनों का रोडमैप तैयार किया है.
लखनऊ में आयोजित होगा दलित महा सम्मेलन
दलितों को अपना बनाने के लिए अगले लोकसभा चुनाव तक की पूरी प्लानिंग बीजेपी ने तैयार कर ली है. तय हुआ है कि यूपी के कुछ शहरों में ऐसी रैली की जाए, जिससे देश भर में संदेश जाए. सूत्रों की मानें तो 2 नवंबर को लखनऊ में दलित महा सम्मेलन किया जाएगा, जिसमें देश के गृह मंत्री अमित शाह को बुलाया जाएगा. पश्चिमी यूपी में ऐसा ही एक सम्मेलन 15 अक्टूबर को करने की तैयारी है. पार्टी की कोशिश है कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नाड्डा इसमें शामिल हों. पीएम नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दलित सम्मेलन 26 अक्टूबर को होगा.
बीजेपी ने यूपी के सभी बूथों से कम से कम पांच दलित समाज के लोगों को एक ग्रूप से जोड़ने की योजना बनाई है. पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि 2014 के लोकसभा चुनावों से ही गैर जाटव दलित समाज का एक बड़ा तबका बीजेपी के लिए वोट कर रहा है. लेकिन अब तैयारी जाटव लोगों को जोड़ने की है. मायावती भी इसी समाज से आती हैं. पासी, खटीक, वाल्मीकि और सोनकर बिरादरी के वोटर तो बीजेपी के लिए वोट करते रहे हैं. दलित सम्मेलन के अलावा लाभार्थी सम्मेलन भी आयोजित होंगे.
दलितों को मन तक पहुंचने के लिए RSS-BJP ने बनाई योजना
आरएसएस की योजना के मुताबिक, दलित बस्तियों में सामूहिक भोज, चौपाल और सामाजिक समरसता बैठकें भी आयोजित की जाएंगी. यूपी के दलित समाज के मन तक पहुंचने के लिए बीजेपी और आरएसएस की योजना ऐसी है कि कोई भी दलित बस्ती न छूट पाए. यूपी में लोकसभा की 17 सीटें एससी समाज के लिए रिज़र्व हैं. इनमें से 15 सीटें पिछली बार बीजेपी को मिली थीं और बाकी दो सीटें बीएसपी जीत गई थी. जबकि 2014 के आम चुनाव में सभी 17 सीटें बीजेपी के खाते में चली गई थीं. इस बार बीजेपी का मिशन उसी प्रदर्शन को दुहराने की है.
पिछले लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव और मायावती साथ थे. तब बीएसपी अध्यक्ष मायावती को वे बुआ कहा करते थे. पर इस बार सारे रिश्ते बदल गए हैं. अब तो अखिलेश ने मायावती के नाम से भी दूरी बना ली है. इसी हफ़्ते जब पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछा कि क्या मायावती भी इंडिया गठबंधन में शामिल होंगी? तो अखिलेश ने मायावती का नाम लिए बिना कहा कि जो बीजेपी के क़रीब हैं उनसे हमारा कोई संबंध नहीं हो सकता.
75 ज़िलों में ट्रेनिंग कैंप लगाएगी समाजवादी पार्टी
अखिलेश का पूरा फ़ोकस इस बार दलित वोट बैंक पर है. समाजवादी पार्टी के बारे में तो यही समझा जाता है कि दलितों से उनका छत्तीस का रिश्ता रहा है, लेकिन अखिलेश ने दलितों को अपना बनाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं की सोच बदलने की ठानी है. इसीलिए सभी 75 ज़िलों में ट्रेनिंग कैंप लगाने का फ़ैसला हुआ है. जिसमें ये बताया जाएगा कि इस काम के लिए क्या क्या करना है. बाबा साहेब वाहिनी नाम से समाजवादी पार्टी में एक संगठन बना दिया गया है. पार्टी की रणनीति के केंद्र में पासी, खटीक और सोनकर जाति के वोटर हैं.
अखिलेश यादव ने इस साल 15 जनवरी को कांशीराम की जयंती समाजवादी पार्टी ऑफिस में मनाई थी. पार्टी ने यूपी के हर बूथ से पांच दलितों की एक टीम बनाने की तैयारी की है. हाल में घोसी के विधानसभा उप चुनाव में दलित समाज के एक वर्ग ने समाजवादी पार्टी को वोट किया था. प्रमोशन में आरक्षण वाला बिल संसद में फाड़ देने को लेकर मायावती हमेशा समाजवादी पार्टी को दलित विरोधी बताती रही हैं.
कांग्रेस शुरू करेगी दलित गौरव यात्रा
कांग्रेस के कुछ नेताओं को लगता था मायावती भी इंडिया गठबंधन में आ सकती हैं. लेकिन बीएसपी अध्यक्ष ने तो कोई भाव ही नहीं दिया. अब जब मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. तो अब कांग्रेस ने भी बीएसपी के वोटरों को तोड़ने की लड़ाई का एलान कर दिया है. पार्टी ने बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की पुण्य तिथि मतलब 9 अक्तूबर से दलित गौरव यात्रा शुरू करने का फ़ैसला किया है. ये यात्रा यूपी की सभी लोकसभा सीटों से होकर जायेगी.
कांग्रेस के राजकीय अध्यक्ष मल्लीकार्जुन खरगे से बातचीत के बाद फ़ाइनल हुआ है. खरगे इस यात्रा में बिजनौर में शामिल होगे. इस सीट से कभी मायावती भी सांसद चुनी गई थी. कांग्रेस का दलित गौरव संवाद अभियान 26 नवंबर यानी संविधान दिवस के दिन ख़त्म होगा. पार्टी ने हर विधानसभा सीट से 250 प्रबुद्ध दलितों का एक डेटा बैंक बनाने का फ़ैसला है. इस दौरान हर विधानसभा क्षेत्र से कम से कम 500 दलितों से माँग पत्र भरवाया जाएगा. यात्रा के दौरान पूरे यूपी में कांग्रेस पार्टी ने चार हज़ार चौपाल दलित बस्तियों में करने की योजना बनाई है. ये सभी चौपाल रात में ही आयोजित की जाएंगी.
कांशीराम की बोली बोल रहे हैं राहुल गांधी
ये महज़ संयोग नहीं है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों बीएसपी संस्थापक कांशीराम की बोली बोलते हैं. उनके बनाए नारे राहुल लगाते हैं. जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की बात तो कांशीराम ने की थी. अब राहुल गांधी भी यही कह रहे हैं. कांग्रेस पार्टी ने अपनी लाइन लेंथ बदल ली है. वैसे एक जमाने में दलित को कांग्रेस का बेस वोट बैंक कहा जाता था. पर यूपी में बीएसपी के उदय के बाद कांग्रेस के हाथ खाली हो गए है. याद करिए एक दौर ऐसा भी था जब राहुल यूपी में दलितों के घर भोजन करने जाते थे, रात वहीं रूक जाते थे. पर पार्टी को कोई फायदा वोट के लिहाज से नहीं हुआ.
सवाल लोकसभा की 80 सीटों का है. दलितों का वोट जहां निर्णायक है. 22 फीसदी दलित वोट में से आधे मतलब करीब 11 प्रतिशत जाटव बिरादरी से आते हैं. बीएसपी चीफ़ मायावती भी खुद इसी समाज से हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में बीएसपी का वोट शेयर गिर कर 12 फ़ीसदी के करीब पहुंच गया था. बीजेपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अब आपदा में अवसर की तलाश में हैं. क्या पता कोशिश करने पर मायावती का प्रचंड समर्थक जाटव भी उनसे टूट जाए.